||श्री सुदर्शन कवच ।।
आपको कोई परेशानी हो रही है तो, इधर ध्यान दे
ऊपरी बाधा, अला-बला, भूत, भूतिनी, यक्षिणी,प्रेतिनी
किसी भी तरह की ओपरी विपत्ति में सुदर्शन कवच रक्षा
करता है | यह अद्वितीय तान्त्रिक शक्ति से युक्त है |
अतः सुदर्शनचक्र की भान्ति पाठक की सदैव रक्षा करता है |
ॐ अस्य श्री सुदर्शन कवच महामन्त्रस्य नारायण ऋषिः
श्री सुदर्शनो देवता, गायत्री छन्दः दृष्टं दारय
इति कीलकम् | हन हन द्विषय इति बीजम् , सर्वशत्रुक्षयार्थे
सुदर्शन स्तोत्रपाठे विनियोगः ||१||
अथ न्यासः
ॐ नारायण ऋषये नमः शिरसे स्वाहा |
ॐ गायत्री छन्दसे नमः मुखे नेत्रत्रयाय वौषट् |
ॐ दुष्टं दारय दारयेति कीलकाय नमः हृदये कवचाय हुम् |
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं द्विष इति बीजम् गुह्ये शिखायै वषट् |
ॐ सुदरशन ज्वलत्पावकसङ्काशेति कीलकाय सर्वाङ्गे
अस्त्राय फट् इति ऋष्यादि |
पश्चान्मूलमन्त्रेण न्यासध्यानं कुर्यात् ||२||
अथ मूलमन्त्रः
ॐ ह्रां ह्रीं नमो भगवते भो भो सुदर्शनचक्र
दुष्टं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ
मथ आरोग्यं कुरु कुरु हुं हुं फट् स्वाहा |
अनेन मूलमन्त्रेण पुरश्चरणं कृत्वा
तदा आयुधसान्निध्यं भवति भवति ||३||
अथ शत्रुनाशन प्रयोगमन्त्रः
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रूं सुदर्शनचक्रराजन् दुष्टान्
दह दह सर्वदुष्टान् भयं कुरु कुरु विदारय
विदारय परमन्त्रान् ग्रासय ग्रासय भक्षय
भक्षय द्रावय द्रावय हुं हुं फट् ||४||
अथ मोहनमन्त्रः
ॐ हुं हन हन ह्रां ह्रां हन हन ओङ्कार
हन हन ओं ह्रीं सुदर्शनचक्र सर्वजनवश्यं
कुरु कुरु ठः ह्रा ठः ठः स्वाहा ||५||
अथ लक्ष्मीप्राप्ति प्रयोगमन्त्रः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रां ह्रां सुदर्शनचक्र
ममगॄहे अष्टसिद्धिं कुरु कुरु ऐं क्लीं स्वाहा ||६||
अथ आकर्षण प्रयोगमन्त्रः
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं जम्भय जम्भय अमुकं आकर्षय
आकर्षय मम वश्यं ज्री ज्री कुरु कुरु स्वाहा ||७||
ॐ ह्रां षोडशवारं पूरकं कॄत्वा श्रों ह्रां त्रिषष्टि
वारं कुम्भकं कृत्वा ॐ ह्रां द्वात्रिंशद्वारं रेचकं
कुर्यात् ।
आपको कोई परेशानी हो रही है तो, इधर ध्यान दे
ऊपरी बाधा, अला-बला, भूत, भूतिनी, यक्षिणी,प्रेतिनी
किसी भी तरह की ओपरी विपत्ति में सुदर्शन कवच रक्षा
करता है | यह अद्वितीय तान्त्रिक शक्ति से युक्त है |
अतः सुदर्शनचक्र की भान्ति पाठक की सदैव रक्षा करता है |
ॐ अस्य श्री सुदर्शन कवच महामन्त्रस्य नारायण ऋषिः
श्री सुदर्शनो देवता, गायत्री छन्दः दृष्टं दारय
इति कीलकम् | हन हन द्विषय इति बीजम् , सर्वशत्रुक्षयार्थे
सुदर्शन स्तोत्रपाठे विनियोगः ||१||
अथ न्यासः
ॐ नारायण ऋषये नमः शिरसे स्वाहा |
ॐ गायत्री छन्दसे नमः मुखे नेत्रत्रयाय वौषट् |
ॐ दुष्टं दारय दारयेति कीलकाय नमः हृदये कवचाय हुम् |
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं द्विष इति बीजम् गुह्ये शिखायै वषट् |
ॐ सुदरशन ज्वलत्पावकसङ्काशेति कीलकाय सर्वाङ्गे
अस्त्राय फट् इति ऋष्यादि |
पश्चान्मूलमन्त्रेण न्यासध्यानं कुर्यात् ||२||
अथ मूलमन्त्रः
ॐ ह्रां ह्रीं नमो भगवते भो भो सुदर्शनचक्र
दुष्टं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ
मथ आरोग्यं कुरु कुरु हुं हुं फट् स्वाहा |
अनेन मूलमन्त्रेण पुरश्चरणं कृत्वा
तदा आयुधसान्निध्यं भवति भवति ||३||
अथ शत्रुनाशन प्रयोगमन्त्रः
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रूं सुदर्शनचक्रराजन् दुष्टान्
दह दह सर्वदुष्टान् भयं कुरु कुरु विदारय
विदारय परमन्त्रान् ग्रासय ग्रासय भक्षय
भक्षय द्रावय द्रावय हुं हुं फट् ||४||
अथ मोहनमन्त्रः
ॐ हुं हन हन ह्रां ह्रां हन हन ओङ्कार
हन हन ओं ह्रीं सुदर्शनचक्र सर्वजनवश्यं
कुरु कुरु ठः ह्रा ठः ठः स्वाहा ||५||
अथ लक्ष्मीप्राप्ति प्रयोगमन्त्रः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रां ह्रां सुदर्शनचक्र
ममगॄहे अष्टसिद्धिं कुरु कुरु ऐं क्लीं स्वाहा ||६||
अथ आकर्षण प्रयोगमन्त्रः
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं जम्भय जम्भय अमुकं आकर्षय
आकर्षय मम वश्यं ज्री ज्री कुरु कुरु स्वाहा ||७||
ॐ ह्रां षोडशवारं पूरकं कॄत्वा श्रों ह्रां त्रिषष्टि
वारं कुम्भकं कृत्वा ॐ ह्रां द्वात्रिंशद्वारं रेचकं
कुर्यात् ।
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